मुड़ के जो आ नहीं पाया होगा उस कूचे में जा के 'ज़फ़र'
हम जैसा बे-बस होगा हम जैसा तन्हा होगा
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(521) Peoples Rate This
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
सब सितम याद हैं सारी हमदर्दियाँ याद हैं
हम इतना चाहते थे एक दूसरे को 'ज़फ़र'
वो क्यूँ न रूठता मैं ने भी तो ख़ता की थी
अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ
नज़र आते नहीं हैं बहर में हम
कितनी बे-सूद जुदाई है कि दुख भी न मिला
जीने का दरस सब से जुदा चाहिए मुझे
ख़िज़ाँ की रुत है जनम-दिन है और धुआँ और फूल
मैं भी हूँ इक मकान की हद में
दिन को मिस्मार हुए रात को तामीर हुए