ख़िज़ाँ की रुत है जनम-दिन है और धुआँ और फूल
हवा बिखेर गई मोम-बत्तियाँ और फूल
Jaun Eliya
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मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
इलाज-ए-अहल-ए-सितम चाहिए अभी से 'ज़फ़र'
तन्हाई तामीर करेगी घर से बेहतर इक ज़िंदान
किसी ख़याल की सरशारी में जारी-ओ-सारी यारी में
क़िस्मत में अगर जुदाइयाँ हैं
नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
बेवफ़ा लोगों में रहना तिरी क़िस्मत ही सही
अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ
उस से बिछड़ के एक उसी का हाल नहीं मैं जान सका
मैं भी हूँ इक मकान की हद में
ये सोच के राख हो गया हूँ
ऐ काश ख़ुद सुकूत भी मुझ से हो हम-कलाम