कैसे करें बंदगी 'ज़फ़र' वाँ
बंदों की जहाँ ख़ुदाइयाँ हैं
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वो एक बार भी मुझ से नज़र मिलाए अगर
सब सितम याद हैं सारी हमदर्दियाँ याद हैं
न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारो
मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
मिसाल-ए-संग पड़ा कब तक इंतिज़ार करूँ
ख़िज़ाँ की रुत है जनम-दिन है और धुआँ और फूल
कितनी बे-सूद जुदाई है कि दुख भी न मिला
हर शख़्स बिछड़ चुका है मुझ से
मुड़ के जो आ नहीं पाया होगा उस कूचे में जा के 'ज़फ़र'
मोहब्बतें थीं कुछ ऐसी विसाल हो के रहा