हर शख़्स बिछड़ चुका है मुझ से
क्या जानिए किस को ढूँढता हूँ
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Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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दूर तक एक ख़ला है सो ख़ला के अंदर
अपनी यादें उस से वापस माँग कर
मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया
पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी
मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
मैं ऐसे जमघटे में खो गया हूँ
वो एक बार भी मुझ से नज़र मिलाए अगर
काम इतनी ही फ़क़त राहगुज़र आएगी
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
बेवफ़ा लोगों में रहना तिरी क़िस्मत ही सही