दूर तक एक ख़ला है सो ख़ला के अंदर
सिर्फ़ तन्हाई की सूरत ही नज़र आएगी
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अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता
शिकायत उस से नहीं अपने-आप से है मुझे
किसी तौर हो न पिन्हाँ तिरा रंग-ए-रू-सियाही
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
पहले भी ख़ुदा को मानता था
इक-आध बार तो जाँ वारनी ही पड़ती है
किसी ज़िंदाँ में सोचना है अबस
यहाँ है धूप वहाँ साए हैं चले जाओ
निगाह करने में लगता है क्या ज़माना कोई
सब सितम याद हैं सारी हमदर्दियाँ याद हैं
नज़र आते नहीं हैं बहर में हम