बेवफ़ा लोगों में रहना तिरी क़िस्मत ही सही
इन में शामिल मैं तिरा नाम न होने दूँगा
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Jaun Eliya
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Sad Poetry
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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निगाह करने में लगता है क्या ज़माना कोई
नज़र आते नहीं हैं बहर में हम
वो एक बार भी मुझ से नज़र मिलाए अगर
यहाँ जो पेड़ थे अपनी जड़ों को छोड़ चुके
बदन ने छोड़ दिया रूह ने रिहा न किया
दरीचा बे-सदा कोई नहीं है
'ज़फ़र' वहाँ कि जहाँ हो कोई भी हद क़ाएम
इलाज-ए-अहल-ए-सितम चाहिए अभी से 'ज़फ़र'
हर एक मरहला-ए-दर्द से गुज़र भी गया
उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहा
ख़ुमार-ए-शब में जो इक दूसरे पे गिरते हैं
दिन को मिस्मार हुए रात को तामीर हुए