वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है
वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है
मानूस अब मिरे दिल-ए-वीराँ से कौन है
किस को ख़बर है किस घड़ी आँखें छलक पड़ें
अब आश्ना तहय्या-ए-तूफ़ाँ से कौन है
देखें जिसे ख़लल है उसी के दिमाग़ में
सरशार अब तसव्वुर-ए-जानाँ से कौन है
वो ज़ुल्म शहर में है कि अंधेर है कोई
वाबस्ता रस्म-ए-जश्न-ए-चराग़ाँ से कौन है
देखो जिसे वही है गिरफ़्तार-ए-आरज़ू
अब दूर इस नवाह में ज़िंदाँ से कौन है
मक़्तल में जिस को अपने लहू से जलाया था
पुर-नूर उस एक शम-ए-फ़रोज़ाँ से कौन है
चेहरों की ज़र्दियों से 'ज़फ़र' हो मुवाज़ना
नज़दीक रंग-ए-दश्त-ओ-बयाबाँ से कौन है
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