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नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं - साबिर ज़फ़र कविता - Darsaal

नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं

नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं

कोई छोड़ गया ये शहर तो क्या तिरे चाहने वाले और भी हैं

कई पलकें हैं और पेड़ कई महफ़ूज़ है ठंडक जिन की अभी

कहीं दूर न जा मत ख़ाक उड़ा तिरे चाहने वाले और भी हैं

कहती है ये शाम की नर्म हवा फिर महकेगी इस घर की फ़ज़ा

नया कमरा सजा नई शम्अ' जला तिरे चाहने वाले और भी हैं

कई फूलों जैसे लोग भी हैं इन्ही ऐसे-वैसे लोगों में

तू ग़ैरों के मत नाज़ उठा तिरे चाहने वाले और भी हैं

बेचैन है क्यूँ ऐ 'नासिर' तू बेहाल है किस की ख़ातिर तू

पलकें तो उठा चेहरा तो दिखा तिरे चाहने वाले और भी हैं

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In Hindi By Famous Poet Sabir Zafar. is written by Sabir Zafar. Complete Poem in Hindi by Sabir Zafar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.