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अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ - साबिर ज़फ़र कविता - Darsaal

अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ

अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ

घर में बिखरी हुई चीज़ों की तरह रहता हूँ

सुब्ह की सैर की करता हूँ तमन्ना शब भर

दिन निकलता है तो बिस्तर में पड़ा रहता हूँ

दीन ओ दुनिया से नहीं है कोई झगड़ा मेरा

यानी मैं इन से अलग अपनी जगह रहता हूँ

ख़्वाहिश-ए-दाद नहीं और कोई फ़रियाद नहीं

एक सहरा है जहाँ नग़्मा-सरा रहता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Sabir Zafar. is written by Sabir Zafar. Complete Poem in Hindi by Sabir Zafar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.