ख़्वाब तुम्हारे आते हैं
नींद उड़ा ले जाते हैं
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इक शोर समेटो जीवन भर और चुप दरिया में उतर जाओ
ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर
पहला पत्थर याद हमेशा रहता है
तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर
इक शक्ल बे-इरादा सर-ए-बाम आ गई
लोगो ये अजीब सानेहा है
ख़िज़ाँ से सीना भरा हो लेकिन तुम अपना चेहरा गुलाब रखना
राह में शहर-ए-तरब याद आया
गुल ओ महताब लिखना चाहता हूँ
इक आग देखता था और जल रहा था मैं