तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर
तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर
मैं आब ओ ख़ाक से गुज़रा अदावतें ले कर
ख़ुद अपने हर्फ़ के शोले में जल के लौटा हूँ
मैं इक सफ़र पे गया था हिकायतें ले कर
कशाँ-कशाँ लब-ए-साहिल उतर गई मुझ में
उदास रात समुंदर की वुसअतें ले कर
हद-ए-ज़मान-ओ-मकां से गुज़र रहा हूँ मैं
ख़ुद अपने होने न होने की हैरतें ले कर
अभी तो ज़ख़्म सिले थे कि आसमाँ से कोई
मिरी तरफ़ चला आया जराहतें ले कर
ज़मीं के लोगो सुनो हश्र अब न उट्ठेगा
गुज़र गया कोई सारी क़यामतें ले कर
अकेला शहर में फिरता हूँ सारा दिन 'साबिर'
मैं अपने बिछड़े हुओं की शबाहतें ले कर
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