ख़िज़ाँ से सीना भरा हो लेकिन तुम अपना चेहरा गुलाब रखना
ख़िज़ाँ से सीना भरा हो लेकिन तुम अपना चेहरा गुलाब रखना
तमाम ताबीर उस को देना और अपने हिस्से में ख़्वाब रखना
हर इक ज़मीं से हर आसमाँ से हर इक ज़माँ से गुज़रते रहना
कहीं पे तारे बिखेर देना कहीं कोई माहताब रखना
जो बे-घरी के दुखों से तुम भी उदास हो जाओ हार जाओ
तो आँसुओं से मकाँ बनाना और उस के ऊपर सहाब रखना
जो अन-कहे हैं जो अन-सुने हैं वो सारे मंज़र भी देख लोगे
बस अपनी आँखों की चुप में रौशन मोहब्बतों के अज़ाब रखना
मुहीब रातों के जंगलों में अबद के जैसा सुकूत हो जब
लहू का अपने दिया जलाना और अपना चेहरा किताब रखना
तुम अपने अंदर की हिजरतों से निढाल हो कर जो लौटना तो
न ख़ुद से कोई सवाल करना न पास अपने जवाब रखना
ये ज़िंदगी तो सफ़र है 'साबिर' सफ़र में जब भी किसी से मिलना
तमाम सदमे भुलाते रहना मुहाल होगा हिसाब रखना
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