असीर-ए-शाम हैं ढलते दिखाई देते हैं
असीर-ए-शाम हैं ढलते दिखाई देते हैं
ये लोग नींद में चलते दिखाई देते हैं
वो इक मकान कि उस में कोई नहीं रहता
मगर चराग़ से जलते दिखाई देते हैं
ये कैसा रंग नज़र आया उस की आँखों में
कि सारे रंग बदलते दिखाई देते हैं
वो कौन लोग हैं जो तिश्नगी की शिद्दत से
कनार-ए-आब पिघलते दिखाई देते हैं
अँधेरी रात में भी शहर के दरीचों से
हमें तो चाँद निकलते दिखाई देते हैं
(538) Peoples Rate This