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हो कोई मसअला अपना दुआ पर छोड़ देते हैं - साबिर रज़ा कविता - Darsaal

हो कोई मसअला अपना दुआ पर छोड़ देते हैं

हो कोई मसअला अपना दुआ पर छोड़ देते हैं

उसे ख़ुद हल नहीं करने ख़ुदा पर छोड़ देते हैं

तुम्हारी याद के बादल बरसते हैं कहाँ आख़िर

चलो ये सिलसिला काली घटा पर छोड़ देते हैं

उसे सर पर बिठाए दर-ब-दर फिरते रहें कब तक

घुटन का बोझ हम दोश-ए-हवा पर छोड़ देते हैं

न तुम मानोगे सच्चाई न हम से झूट सँभलेगा

हक़ीक़त क्या है हम अहल-ए-सफ़ा पर छोड़ देते हैं

खिलेंगे ज़ख़्म सीने में कि जज़्बों की नुमू होगी

जो कल होगा उसे कल की अदा पर छोड़ देते हैं

तअल्लुक़ तुम से जो भी है नहीं मालूम कल क्या हो

चलो ये फ़ैसला अपना ख़ुदा पर छोड़ देते हैं

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In Hindi By Famous Poet Sabir Raza. is written by Sabir Raza. Complete Poem in Hindi by Sabir Raza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.