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अजनबी - साबिर दत्त कविता - Darsaal

अजनबी

अजनबी रहने दे मुझ को, मुझे अपना न बना

में तिरी माँग सितारों से नहीं भर सकता

तेरे दामन को बहारों से नहीं भर सकता

मेरी बे-रंग फ़ज़ाओं में कहाँ शाम ओ सहर

मेरे तारीक घरौंदे में कहाँ तेरा गुज़र

मेरे सहरा से गुलिस्तानों की उम्मीद न कर

उजड़ी दुनिया से शबिस्तानों की उम्मीद न कर

अजनबी रहने दे मुझ को, मुझे अपना न बना

मेरी ख़ातिर ये महल और ये मेहराब न छोड़

ख़्वाब-गाहों के मसर्रत से भरे ख़्वाब न छोड़

रौशनी छोड़ के दर आ न सियह-ख़ाने में

शम्अ रौशन हो भला क्यूँ किसी वीराने में

मैं तुझे कोई हसीं ताज नहीं दे सकता

कल तो कल है मैं तुझे आज नहीं दे सकता

अजनबी रहने दे मुझ को, मुझे अपना न बना

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In Hindi By Famous Poet Sabir Dutt. is written by Sabir Dutt. Complete Poem in Hindi by Sabir Dutt. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.