फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है
फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है
आप आते हैं कि गुलशन में सबा आती है
आप के रुख़ से बरसता है सहर का जोबन
आप की ज़ुल्फ़ के साए में घटा आती है
आप के हाथ जो छू जाएँ किसी डाली से
गुल ही क्या ख़ार से भी बू-ए-हिना आती है
आप लहरा के न यूँ दूधिया आँचल को चलें
मुस्कुराते हुए फूलों को हया आती है
आप को क्यूँ न तराशा गया मेरे दिल से
संग-ए-मरमर से हमेशा ये सदा आती है
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