क्या पता क्या था उधर और क्या न था
क्या पता क्या था उधर और क्या न था
क़द मिरा दीवार से ऊँचा न था
ज़ेहन मुर्दा जिस्म बे-हिस बे-लिबास
मैं ने वो देखा है जो देखा न था
भागता फिरता हूँ अपने-आप से
ऐसा भी होगा कभी सोचा न था
मल्गजे बिगड़े से चेहरे हर तरफ़
ज़िंदगी पहले तुझे देखा न था
मसअले कुछ लिख गया दीवार पर
एक दीवाना जो दीवाना न था
उस की लाखों में यही पहचान थी
क़ब्र पर उस की कोई कतबा न था
जिस ने जो माँगा उसे वो दे दिया
ऐ ख़ुदा क्या मैं तिरा बंदा न था
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