दुरुस्त है कि ये दिन राएगाँ नहीं गुज़रे
दुरुस्त है कि ये दिन राएगाँ नहीं गुज़रे
मगर सुकूँ से तो ऐ जान-ए-जाँ नहीं गुज़रे
मिज़ाज-ए-शहर-ए-जुनूँ अब ये बरहमी कैसी
किस आग से तिरे पीर-ओ-जवाँ नहीं गुज़रे
नज़र से दूर सही फिर भी कुश्तगान-ए-वफ़ा
वहाँ से कम तो ये सदमे यहाँ नहीं गुज़रे
मुरव्वतन वो मिरी बात पूछ कर चुप हैं
वगरना कब मिरे शिकवे गराँ नहीं गुज़रे
समुंदरों की हवा दूर दूर से न गुज़र
वहाँ का हाल सुना हम जहाँ नहीं गुज़रे
हुजूम-ए-कार जहाँ हो कि दश्त-ए-जाँ का सुकूत
तिरे फ़िराक़ के सदमे कहाँ नहीं गुज़रे
गुज़र गए वो जो जाँ से मगर ये हसरत है
कोई 'सबा' से ये कह दे मियाँ नहीं गुज़रे
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