यहाँ हर तरफ़ हैं अदाकार चेहरे
मैं रूदाद दिल की किसे क्या बताऊँ
जो ख़्वाब-ए-मुसलसल ही अरमाँ है मिरा
वही ख़्वाब टूटा वही प्यार रूठा
मनाज़िर ने रंग अपने सब खो दिए हैं
वो जब से ख़फ़ा है किसे क्या बताऊँ
ज़बाँ चुप है लेकिन सरापा-बयाँ हूँ
ये दिल की लगी है किसे क्या बताऊँ