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शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं - सबा नुसरत कविता - Darsaal

शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं

शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं

आँसू मिरे दिल पे गिरने लगते हैं

तुझ से दूरी और क़यामत लगती है

आपस में दो वक़्त जो मिलने लगते हैं

दिन तो जैसे-तैसे कट ही जाता है

रात को उठ उठ तारे गिनने लगते हैं

एक तबस्सुम देख के तेरे होंटों पर

फूल ख़िज़ाँ की रुत में खिलने लगते हैं

होता है शानों पे महसूस उस का हाथ

मौसम जब भी रंग बदलने लगते हैं

उस की जब हो जाए 'नुसरत' चश्म-ए-करम

चाक गरेबानों के सिलने लगते हैं

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In Hindi By Famous Poet Saba Nusrat. is written by Saba Nusrat. Complete Poem in Hindi by Saba Nusrat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.