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कहाँ पे बिछड़े थे हम लोग कुछ पता मिल जाए - सबा जायसी कविता - Darsaal

कहाँ पे बिछड़े थे हम लोग कुछ पता मिल जाए

कहाँ पे बिछड़े थे हम लोग कुछ पता मिल जाए

तुम्हारी तरह अगर कोई दूसरा मिल जाए

हज़ारों नक़्श निहाँ होंगे उस के सीने में

कभी कभी तो ये आईना बोलता मिल जाए

जिलौ में ले के चलें सारे ना-तमाम से ख़्वाब

न जाने किस जगह उम्र-ए-गुरेज़-पा मिल जाए

न जाने क्या करे इमरोज़ का ये सन्नाटा

हमारे माज़ी का इक लम्हा चीख़ता मिल जाए

शिकस्त-ओ-रेख़्त की दुनिया में हूँ तो ख़्वाहिश है

ख़याल बिखरा हुआ जिस्म टूटता मिल जाए

मैं नज़्र कर दूँ उसे ये लहूलुहान बदन

फ़रेब-ख़ुर्दा अक़ीदत का क़ाफ़िला मिल जाए

अगरचे हद्द-ए-नज़र तक धुआँ धुआँ है फ़ज़ा

इसी दयार में मुमकिन है फिर 'सबा' मिल जाए

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In Hindi By Famous Poet Saba Jayasi. is written by Saba Jayasi. Complete Poem in Hindi by Saba Jayasi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.