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इन पत्थरों के शहर में दिल का गुज़र कहाँ - सबा इकराम कविता - Darsaal

इन पत्थरों के शहर में दिल का गुज़र कहाँ

इन पत्थरों के शहर में दिल का गुज़र कहाँ

ले जाएँ हम उठा के ये शीशे का घर कहाँ

हम अपना नाम ले के ख़ुद अपने ही शहर में

घर घर पुकार आए खुला कोई दर कहाँ

जैसे हर एक दर पे ख़मोशी का क़ुफ़्ल हो

अब गूँजती है शहर में ज़ंजीर-ए-दर कहाँ

हर वक़्त सामने था समुंदर ख़ुलूस का

लेकिन किसी ने देखा कभी डूब कर कहाँ

जो चाहो भी तो जिस्म से निकलोगे किस तरह

महबस में साँस के कोई दीवार-ओ-दर कहाँ

इस सख़्त दोपहर में कहाँ जा के बैठिए

राहों में दूर तक 'सबा' कोई शजर कहाँ

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In Hindi By Famous Poet Saba Ikram. is written by Saba Ikram. Complete Poem in Hindi by Saba Ikram. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.