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आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ - सबा अख़्तर कविता - Darsaal

आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ

आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ

शमएँ जहाँ न जलतीं आँखें जला चुका हूँ

ख़ुर्शीद-ए-शाम-ए-रफ़्ता लौटे तो उस से पूछूँ

मैं ज़िंदगी की कितनी सुब्हें गँवा चुका हूँ

उम्मीद-ओ-बीम-ए-शब ने ये भी भुला दिया है

कितने दिए जलाए कितने बुझा चुका हूँ

मैं बाज़गश्त-ए-दिल हूँ पैहम शिकस्त-ए-दिल हूँ

वो आज़मा रहा हूँ जो आज़मा चुका हूँ

ये शब बुझी बुझी है शायद कि आख़िरी है

ऐ सुब्ह-ए-दर्द तेरे नज़दीक आ चुका हूँ

मुझ को फ़रेब मत दे ऐ मौसम-ए-बहाराँ

ऐसे कई शगूफ़े मैं भी खिला चुका हूँ

सूरज तुलू हो या सूरज ग़ुरूब 'सहबा'

शब-हा-ए-ग़म के पर्दे ख़ुद पर गिरा चुका हूँ

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In Hindi By Famous Poet Saba Akhtar. is written by Saba Akhtar. Complete Poem in Hindi by Saba Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.