ये हमीं हैं कि तिरा दर्द छुपा कर दिल में
काम दुनिया के ब-दस्तूर किए जाते हैं
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(830) Peoples Rate This
जब इश्क़ था तो दिल का उजाला था दहर में
पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम
इस शान का आशुफ़्ता-ओ-हैराँ न मिलेगा
यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा
उजाला कर के ज़ुल्मत में घिरा हूँ
कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो
समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमी
मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-शौक़ सुस्त-गाम हो क्यूँ
क्या मआल-ए-दहर है मेरी मोहब्बत का मआल
कौन उठाए इश्क़ के अंजाम की जानिब नज़र
दोस्तों से ये कहूँ क्या कि मिरी क़द्र करो
जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है