टुकड़े हुए थे दामन-ए-हस्ती के जिस क़दर
दल्क़-ए-गदा-ए-इश्क़ के पैवंद हो गए
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(613) Peoples Rate This
भीड़ तन्हाइयों का मेला है
तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है
अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक
कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला
अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक
काम आएगी मिज़ाज-ए-इश्क़ की आशुफ़्तगी
अच्छा हुआ कि सब दर-ओ-दीवार गिर पड़े
रौशनी ख़ुद भी चराग़ों से अलग रहती है
आप आए हैं सो अब घर में उजाला है बहुत
सौ बार जिस को देख के हैरान हो चुके
कौन उठाए इश्क़ के अंजाम की जानिब नज़र