मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-शौक़ सुस्त-गाम हो क्यूँ
क़दम बढ़ाए हुए हाँ क़दम बढ़ाए हुए
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए
रौशनी ख़ुद भी चराग़ों से अलग रहती है
हवस-परस्त अदीबों पे हद लगे कोई
उजाला कर के ज़ुल्मत में घिरा हूँ
यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा
कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला
गए थे नक़्द-ए-गिराँ-माया-ए-ख़ुलूस के साथ
हुस्न जो रंग ख़िज़ाँ में है वो पहचान गया
उस का वादा ता-क़यामत कम से कम
पस्ती ने बुलंदी को बनाया है हक़ीक़त
मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़