कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला
असीर-ए-ग़म कोई ज़िंदाँ से जैसे छूट कर निकला
Jaun Eliya
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गए थे नक़्द-ए-गिराँ-माया-ए-ख़ुलूस के साथ
यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा
तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है
कब तक नजात पाएँगे वहम ओ यक़ीं से हम
अज़ल से आज तक सज्दे किए और ये नहीं सोचा
ख़्वाहिशों ने दिल को तस्वीर-ए-तमन्ना कर दिया
आप आए हैं सो अब घर में उजाला है बहुत
जब इश्क़ था तो दिल का उजाला था दहर में
है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआ
क्या मआल-ए-दहर है मेरी मोहब्बत का मआल
आप के लब पे और वफ़ा की क़सम
तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं