इश्क़ आता न अगर राह-नुमाई के लिए
आप भी वाक़िफ़-ए-मंज़िल नहीं होने पाते
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(526) Peoples Rate This
सोना था जितना अहद-ए-जवानी में सो लिए
चला-चल मोहलत-ए-आराम क्या है
हवस-परस्त अदीबों पे हद लगे कोई
अभी तो एक वतन छोड़ कर ही निकले हैं
रौशनी ख़ुद भी चराग़ों से अलग रहती है
इक रोज़ छीन लेगी हमीं से ज़मीं हमें
तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं
कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो
उलझनों में कैसे इत्मीनान-ए-दिल पैदा करें
अज़ल से आज तक सज्दे किए और ये नहीं सोचा
उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं
उजाला कर के ज़ुल्मत में घिरा हूँ