इस शान का आशुफ़्ता-ओ-हैराँ न मिलेगा
आईने से फ़ुर्सत हो तो तस्वीर-ए-'सबा' देख
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पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम
जो देखिए तो करम इश्क़ पर ज़रा भी नहीं
जब इश्क़ था तो दिल का उजाला था दहर में
कौन उठाए इश्क़ के अंजाम की जानिब नज़र
इक रोज़ छीन लेगी हमीं से ज़मीं हमें
आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए
जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है
ख़्वाहिशों ने दिल को तस्वीर-ए-तमन्ना कर दिया
दोस्तों से ये कहूँ क्या कि मिरी क़द्र करो
तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है
ऐसा भी कोई ग़म है जो तुम से नहीं पाया
काम आएगी मिज़ाज-ए-इश्क़ की आशुफ़्तगी