अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक
रात हो जाए तो हम शम्अ बुझा देते हैं
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
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Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Gulzar
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है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआ
कब तक यक़ीन इश्क़ हमें ख़ुद न आएगा
हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है
ऐसा भी कोई ग़म है जो तुम से नहीं पाया
कब तक नजात पाएँगे वहम ओ यक़ीं से हम
रौशनी ख़ुद भी चराग़ों से अलग रहती है
कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला
इश्क़ आता न अगर राह-नुमाई के लिए
रवाँ है क़ाफ़िला-ए-रूह-ए-इलतिफ़ात अभी
गए थे नक़्द-ए-गिराँ-माया-ए-ख़ुलूस के साथ
जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर
टुकड़े हुए थे दामन-ए-हस्ती के जिस क़दर