आप आए हैं सो अब घर में उजाला है बहुत
कहिए जलती रहे या शम्अ बुझा दी जाए
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पस्ती ने बुलंदी को बनाया है हक़ीक़त
हवस-परस्त अदीबों पे हद लगे कोई
उलझनों में कैसे इत्मीनान-ए-दिल पैदा करें
ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी
कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो
यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा
सौ बार जिस को देख के हैरान हो चुके
ये हमीं हैं कि तिरा दर्द छुपा कर दिल में
कौन उठाए इश्क़ के अंजाम की जानिब नज़र
ख़्वाहिशों ने दिल को तस्वीर-ए-तमन्ना कर दिया
बाल-ओ-पर की जुम्बिशों को काम में लाते रहो
अभी तो एक वतन छोड़ कर ही निकले हैं