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पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम - सबा अकबराबादी कविता - Darsaal

पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम

पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम

इतने तो नहीं हैं बे-अदब हम

इल्ज़ाम नहीं है फ़स्ल-ए-गुल पर

ख़ुद अपने जुनूँ का हैं सबब हम

साहिल पे सिवाए ख़ाक क्या था

ग़र्क़ाब हुए हैं तिश्ना-लब हम

करते हैं तलाश-ए-आदमिय्यत

दुनिया में हैं आदमी अजब हम

फ़ुर्सत हो तो आ के देख जाओ

मुद्दत से पड़े हैं जाँ-ब-लब हम

बाहर से हैं मोमिन-ए-सरापा

इन्दर से तमाम बू-लहब हम

हर शाख़ पे गुल खिले हुए थे

गुलशन से 'सबा' चले थे जब हम

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In Hindi By Famous Poet Saba Akbarabadi. is written by Saba Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Saba Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.