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इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है - सबा अकबराबादी कविता - Darsaal

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

जैसे हमें कुल आलम-ए-इम्काँ से गिला है

किस आँख ने समझा मिरी बे-बाल-ओ-परी से

जो कुछ मुझे दीवार-ए-गुलिस्ताँ से गिला है

आ ख़ंजर-ए-दिलदार मिरे दिल को सुना दे

शायद तुझे कुछ मेरी रग-ए-जाँ से गिला है

छोड़ा है कहाँ साथ मिरे दस्त-ए-जुनूँ का

कम-माएगी-ए-दामन-ए-इम्काँ से गिला है

कहते हैं बस उतनी ही तिरी ताब-ए-यक़ीं थी

है कुफ़्र से शिकवा मिरे ईमाँ से गिला है

इक लफ़्ज़-ए-तसल्ली मिरे हिस्से में न आया

ऐ ज़ौक़-ए-समाअत लब-ए-जानाँ से गिला है

मिल जाती है जाँ क़र्ज़ मगर मय नहीं मिलती

बेगानगी-ए-बादा-फ़रोशाँ से गिला है

ईमान का पिंदार लिए फिरता हूँ हर सू!

ये भी उसी ग़ारत-गर-ए-ईमाँ से गिला है

कैसे दिल-ए-तन्हा ने बनाए हैं मुख़ातब

दीवारों से शिकवा दर-ए-ज़िंदाँ से गिला है

कहते हैं 'सबा' चाँदनी गुलशन की न देखे

उस शख़्स को अरबाब-ए-गुलिस्ताँ से गिला है

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In Hindi By Famous Poet Saba Akbarabadi. is written by Saba Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Saba Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.