जो आ के रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क की क़ीमत होती है
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कारवाँ लुट गया राहबर छुट गया रात तारीक है ग़म का यारा नहीं
करना ही पड़ेगा ज़ब्त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसू
गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती है
लुटा के राह-ए-मोहब्बत में हर ख़ुशी मैं ने
सामने उन को पाया तो हम खो गए आज फिर हसरत-ए-गुफ़्तुगू रह गई
भूल जाना था तो फिर अपना बनाया क्यूँ था
होश-ओ-ख़िरद से दूर हूँ सूद-ओ-ज़ियाँ से दूर