होश-ओ-ख़िरद से दूर हूँ सूद-ओ-ज़ियाँ से दूर
होश-ओ-ख़िरद से दूर हूँ सूद-ओ-ज़ियाँ से दूर
दीवाना हूँ क़ुयूद-ए-रुसूम-ए-जहाँ से दूर
हद्द-ए-नज़र से दूर ज़मान-ओ-मकाँ से दूर
मंज़िल है मेरे इश्क़ की फ़हम-ओ-गुमाँ से दूर
रंगीनी-ए-जमाल से सहरा भी है चमन
बैठा हूँ गुल्सिताँ में मगर गुल्सिताँ से दूर
ये बे-ख़ुदी-ए-शौक़ का आलम तो देखिए
सज्दे तो कर रहा हूँ मगर आस्ताँ से दूर
दिल भी वही है मैं भी वही दर्द भी वही
लेकिन ये क्या कि लज़्ज़त-ए-सोज़-ए-निहाँ से दूर
शायद उसी का नाम है नाकामी-ए-मुराद
मंज़िल से हूँ क़रीब मगर कारवाँ से दूर
अफ़्साना-ए-हयात को समझो तो ऐ 'सबा'
हर हर्फ़ दास्ताँ है मगर दास्ताँ से दूर
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