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उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को - साइल देहलवी कविता - Darsaal

उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को

उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को

ब-मुश्किल कुछ सिखाया है नवा-संजान-ए-गुलशन को

गरेबाँ चाक करने का सबब वहशी ने फ़रमाया

कि उस के तार ले कर मैं सियूंगा चाक-ए-दामन को

बहार आते ही बटती हैं ये चीज़ें क़ैद-ख़ानों में

सलासिल हाथ को पाँव को बेड़ी तौक़ गर्दन को

झड़ी ऐसी लगा दी है मिरे अश्कों की बारिश ने

दबा रक्खा है भादों को भुला रक्खा है सावन को

दिल-ए-मरहूम की मय्यत इजाज़त दो तो रख दें हम

तिरे तलवे-बराबर ही ज़मीं काफ़ी है मदफ़न को

इजाज़त दो तो सारी अंजुमन के दिल हिला दूँ मैं

समझ रक्खा है तुम ने हेच तासीरात-ए-शेवन को

सुलूक-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना की ऐ साक़ी तलाफ़ी क्या

ब-जुज़ इस के दुआएँ दो उसे फैला के दामन को

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In Hindi By Famous Poet Saail Dehlvi. is written by Saail Dehlvi. Complete Poem in Hindi by Saail Dehlvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.