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अमानत मोहतसिब के घर शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी - साइल देहलवी कविता - Darsaal

अमानत मोहतसिब के घर शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी

अमानत मोहतसिब के घर शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी

तो ये समझो कि बुनियाद-ए-ख़राबात-ए-मुग़ाँ रख दी

कहूँ क्या पेश-ए-ज़ाहिद क्यूँ शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी

मिरी तौफ़ीक़ जो कुछ थी बराए मेहमाँ रख दी

यहाँ तक तो निभाया मैं ने तर्क-ए-मय-परस्ती को

कि पीने को उठा ली और लीं अंगड़ाइयाँ रख दी

जनाब-ए-शैख़ मय-ख़ाने में बैठे हैं बरहना-सर

अब उन से कौन पूछे आप ने पगड़ी कहाँ रख दी

तुम्हें पर्वा न हो मुझ को तो जिंस-ए-दिल की पर्वा है

कहाँ ढूँडूँ कहाँ फेंकी कहाँ देखूँ कहाँ रख दी

लगा लेंगे उसे अहल-ए-वफ़ा बे-शुबह आँखों से

अगर पा-ए-अदू पर उस ने ख़ाक-ए-आस्ताँ रख दी

इधर पर नोच कर डाला क़फ़स में उफ़ रे बेदर्दी

उधर इक जलती चिंगारी मियान-ए-आशियाँ रख दी

ज़मीर उस का डुबो देगा उसे आब-ए-ख़जालत में

वफ़ादारी की तोहमत ग़ैर पर क्यूँ बद-गुमाँ रख दी

हवस मस्ती की 'साइल' को नहीं काफ़ी है थोड़ी सी

प्याले में अगर पस-ख़ुर्दा-ए-पीर-ए-मुग़ाँ रख दी

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In Hindi By Famous Poet Saail Dehlvi. is written by Saail Dehlvi. Complete Poem in Hindi by Saail Dehlvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.