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आँखों से वो कभी मिरी ओझल नहीं रहा - सअादत सईद कविता - Darsaal

आँखों से वो कभी मिरी ओझल नहीं रहा

आँखों से वो कभी मिरी ओझल नहीं रहा

ग़ाफ़िल मैं उस की याद से इक पल नहीं रहा

क्या है जो उस ने दूर बसा ली हैं बस्तियाँ

आख़िर मिरा दिमाग़ भी अव्वल नहीं रहा

लाओ तो सिर्र-ए-दहर के मफ़्हूम की ख़बर

उक़्दा अगरचे कोई भी मोहमल नहीं रहा

शायद न पा सकूँ मैं सुराग़-ए-दयार-ए-शौक़

क़िबला दुरुस्त करने का कस-बल नहीं रहा

दश्त-ए-फ़ना में देखा मुसावात का उरूज

अशरफ़ नहीं रहा कोई असफ़ल नहीं रहा

है जिस का तख़्त सज्दा-गह-ए-ख़ास-ओ-आम-ए-शहर

मैं उस से मिलने के लिए बे-कल नहीं रहा

जिस दम जहाँ से डोलती डोली ही उठ गई

तब्ल ओ अलम तो क्या कोई मंडल नहीं रहा

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In Hindi By Famous Poet Saadat Saeed. is written by Saadat Saeed. Complete Poem in Hindi by Saadat Saeed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.