दोनों हों कैसे एक जा 'मेहदी' सुरूर-ओ-सोज़-ए-दिल
बर्क़-ए-निगाह-ए-नाज़ ने गिर के बता दिया कि यूँ
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(576) Peoples Rate This
जिंस-ए-वफ़ा का दहर में बाज़ार गिर गया
मुस्तक़िल अब बुझा बुझा सा है
इन में क्या फ़र्क़ है अब इस का भी एहसास नहीं
कैसे करूँ मैं ज़ब्त-ए-राज़ तू ही मुझे बता कि यूँ
कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा
बनते ही शहर का ये देखिए वीराँ होना