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मुस्तक़िल अब बुझा बुझा सा है - एस ए मेहदी कविता - Darsaal

मुस्तक़िल अब बुझा बुझा सा है

मुस्तक़िल अब बुझा बुझा सा है

आख़िर इस दिल को ये हुआ क्या है

तुम को चाहा बड़ा क़ुसूर किया

तुम ही बतला दो कि अब सज़ा क्या है

माँग लूँ उन का दिल अगर वो कहें

क़त्ल का तेरे ख़ूँ-बहा क्या है

क्यूँ नफ़स में कबाब की बू है

मेरे सीने में ये जला क्या है

मोहर है सब्त क़ल्ब-ए-वाइज़ पर

दाग़ माथे पे बद-नुमा क्या है

हज़रत-ए-दिल हैं क्यूँ उदास उदास

ना-उम्मीदी ने कुछ कहा क्या है

काफ़ी इक लफ़्ज़ है हुज़ूर-ए-ख़ुदा

ये शब-ओ-रोज़ इल्तिजा किया है

वही माँगो कि हो दुआ मक़्बूल

यानी अल्लाह चाहता क्या है

देखिए ये कलाम-ए-'मेहदी' में

फ़िक्र इंसाँ की इंतिहा क्या है

मैं ने आँखों से अश्क पोंछे थे

रंग दामन पे लाल सा क्या है

ज़ात 'मेहदी' की फिर ग़नीमत है

गर वो अच्छा नहीं बुरा क्या है

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In Hindi By Famous Poet S A Mehdi. is written by S A Mehdi. Complete Poem in Hindi by S A Mehdi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.