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कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा - एस ए मेहदी कविता - Darsaal

कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा

कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा

ये और दिल है अब वो मिरा दिल नहीं रहा

सीने में मौजज़न नहीं तूफ़ान-ए-आरज़ू

टकराए किस से मौज कि साहिल नहीं रहा

जो कुछ मता-ए-दिल थी वो सब ख़त्म हो गई

अब कारोबार-ए-शौक़ के क़ाबिल नहीं रहा

बज़्म-ए-तरब बिसात-ए-मसर्रत फ़रेब हैं

मैं ऐश-ए-मुस्तआर का क़ाएल नहीं रहा

कम-माएगी ने दिल तुझे बे-क़द्र कर दिया

दुज़्द-ए-निगाह-ए-नाज़ के क़ाबिल नहीं रहा

जिंस-ए-वफ़ा का दहर में बाज़ार गिर गया

जब इश्क़ फ़ैज़-ए-हुस्न का हामिल नहीं रहा

आला भी होते हैं कभी असफ़ल से बहरा-वर

गुल क्या खिलें अगर करम-ए-गिल नहीं रहा

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In Hindi By Famous Poet S A Mehdi. is written by S A Mehdi. Complete Poem in Hindi by S A Mehdi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.