मोम पिघलाता रहा तेरा ख़याल
क्या सुलगती रात है मेरे नदीम
आतिशीं शोरिश-ज़दा तेरे ख़याल
तू कि कोसों दूर मुझ से पुर-यक़ीन
तू यहीं पास मेरे है कहीं
रंग है कि नूर की बरसात है
चाँदनी और प्यार की कोमल सदा
तेरे साँसों की महक फैली हुई
कितनी गड-मड हो गई हैं धड़कनें
लाख मैं ने बाँध के रक्खा बदन
तेरी नज़रों से जो पिघला मोम था
रूह को लज़्ज़त तुम्हारे क़ुर्ब में
और आँखों में तेरा मंज़र रहा
रात कितने कर्ब में ढलती रही
मोम पिघलाता रहा तेरा ख़याल
मैं कि मेरे जिस्म का हर साज़ तू
तू कि तेरी बे-नियाज़ी
क्या कहूँ!!
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