ये किस हसीन ने लोगों को रोक रक्खा है
ये किस हसीन ने लोगों को रोक रक्खा है
तमाम शहर के रस्तों को रोक रक्खा है
निकल पड़ें न कहीं पाने अपनी ताबीरें
इसी लिए सभी ख़्वाबों को रोक रक्खा है
वो कह रहे हैं कहो दिल की बात बात मगर
न जाने क्यूँ कई बातों को रोक रक्खा है
दलीलें देने को दे सकते हैं हज़ार मगर
सभी हवालों जवाज़ों को रोक रक्खा है
अभी हयात के गोशे छुपे हुए हैं बहुत
किसी ने क्यूँ सभी रंगों को रोक रक्खा है
न अपने-आप में हो जाए ग़र्क़ दरिया भी
ज़मीं ने कैसे किनारों को रोक रक्खा है
न राज़ फ़ाश कभी हों ज़मीन वालों के
फ़लक ने चाँद सितारों को रोक रक्खा है
तमाम लोग ही पागल न हो के रह जाएँ
नुमाइशों से हसीनों को रोक रक्खा है
तमाम शहर को रौशन न होने देंगे कभी
हमारे सीनों की आगों को रोक रक्खा है
दिए बुझाती भी हैं तो जलाती भी हैं यही
ये किस ने तुंद हवाओं को रोक रक्खा है
न काम करने के करते न करने देते हैं
हमारे ख़्वासों ने आमों को रोक रक्खा है
हमारी राहनुमाई को रस्ते काफ़ी थे
प ज़ुल्मतों ने भी रस्तों को रोक रक्खा है
किसी किसी को है हक़ ज़िंदा रहने का हासिल
दुखों ने लोगों की साँसों को रोक रक्खा है
भले ज़माने की उम्मीद पर अभी 'रूही'
बहुत ज़रूरी भी कामों को रोक रक्खा है
(607) Peoples Rate This