याद आते हो किस सलीक़े से
याद आते हो किस सलीक़े से
जैसे बारिश हो वक़्फ़े वक़्फ़े से
याद कोई रही हो वाबस्ता
जैसे हर रुत के ख़ास लम्हे से
जैसे ये भी हो हुस्न का अंदाज़
बात करना मगर तक़ाज़े से
मौसम-ए-गुल को कोई बतला दो
दिल भी खिलता है फूल खिलने से
रात का अपना हुस्न होता है
रात को देख दिन के शीशे से
मेरे सीने में रख गया हर दर्द
मेरा हमदर्द किस क़रीने से
इक शहादत है राह में मरना
मौत है लौट जाना रस्ते से
लुत्फ़ ऊँची उड़ान में क्या है
पूछ लेना किसी परिंदे से
हर मुख़ालिफ़ है वाजिब-उल-क़त्ल आज
तेरे इस्लाम के हवाले से
कार-फ़रमा है क्या पस-ए-अल्फ़ाज़
कितना वाज़ेह है तेरे लहजे से
कौन सी बात हो गई ऐसी
यार उठने लगे हैं चुपके से
देख रफ़्तार-ए-ज़िंदगी 'रूही'
रुक गई गाड़ी एक झटके से
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