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मेरे लिए वो शख़्स मुसीबत भी बहुत है - रूही कंजाही कविता - Darsaal

मेरे लिए वो शख़्स मुसीबत भी बहुत है

मेरे लिए वो शख़्स मुसीबत भी बहुत है

सच ये भी है उस की मुझे आदत भी बहुत है

मिलता है अगर ख़्वाब में मिलता तो है कोई

उस की ये इनायत ये मुरव्वत भी बहुत है

उस ने मुझे समझा था कभी प्यार के क़ाबिल

ख़ुश रहना हो तो इतनी मसर्रत भी बहुत है

उल्फ़त का निभाना तो बड़ी बात है लेकिन

इस दौर में इज़हार-ए-मोहब्बत भी बहुत है

जाने पे ब-ज़िद है तो कहूँ इस के सिवा क्या

ऐ दोस्त तिरी इतनी रिफ़ाक़त भी बहुत है

इक फ़ासला क़ाएम है ब-दस्तूर ब-हर-हाल

हासिल मुझे उस शख़्स की क़ुर्बत भी बहुत है

जीना तो पड़ेगा ही बग़ैर उस के भी 'रूही'

हालाँकि मुझे उस की ज़रूरत भी बहुत है

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In Hindi By Famous Poet Roohi Kanjahi. is written by Roohi Kanjahi. Complete Poem in Hindi by Roohi Kanjahi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.