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इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई - रूही कंजाही कविता - Darsaal

इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई

इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई

तेज़ी से इतनी आग पकड़ता नहीं कोई

वो चेहरा तो चमन है मगर सानेहा ये है

उस शाख़-ए-लब से फूल ही झड़ता नहीं कोई

ख़ुद को बढ़ा-चढ़ा के बताते हैं यार लोग

हालाँकि इस से फ़र्क़ तो पड़ता नहीं कोई

लोगों का क्या है आज मिले कल बिछड़ गए

ग़म दो घड़ी भी मुझ से बिछड़ता नहीं कोई

मजबूरी-ए-हयात है वर्ना ज़मीन पर

ख़ुश हो के एड़ियाँ तो रगड़ता नहीं कोई

जिस तरह याद छोड़ गया मेरे दिल में तू

इस उम्दगी से लाल भी जुड़ता नहीं कोई

कहते हैं लोग देख के इस हाल में मुझे

अपने ख़िलाफ़ जंग तो लड़ता नहीं कोई

'रूही' तुझे भी लाग रही है ज़माने से

बे-वज्ह तो किसी से बिगड़ता नहीं कोई

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In Hindi By Famous Poet Roohi Kanjahi. is written by Roohi Kanjahi. Complete Poem in Hindi by Roohi Kanjahi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.