Ghazals of Roohi Kanjahi
नाम | रूही कंजाही |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Roohi Kanjahi |
जन्म की तारीख | 1936 |
ज़ालिम पे अज़ाब हो गया हूँ
यूँ आज अपने-आप से उलझा हुआ हूँ मैं
ये सिलसिला-ए-शाम-ओ-सहर यूँही नहीं है
ये किस हसीन ने लोगों को रोक रक्खा है
याद आते हो किस सलीक़े से
तुझ पे हर हाल में मरना चाहूँ
तो मिल भी जाए तो फिर भी तुझे तलाश करूँ
पुर-हौल ख़राबों से शनासाई मिरी है
फिर कोई हादिसा हुआ ही नहीं
मुंसिफ़-वक़्त से बेगाना गुज़रना होगा
मुँह-ज़ोर आरज़ूओं की बे-मेहरियाँ न पूछ
मोजज़ा कोई दिखाऊँ भी तो क्या
मेरे लिए वो शख़्स मुसीबत भी बहुत है
किसी भी काम का मेरा हुनर नहीं न सही
किस लिए फिरता हूँ तन्हा न किसी ने पूछा
इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई
हज़ार रंग जलाल-ओ-जमाल के देखे
हसीं चेहरों से सूरत-आश्नाई होती रहती है
हर तल्ख़ हक़ीक़त का इज़हार भी करना है
चैन घर में न कभी तेरे नगर में पाऊँ
और अभी तेज़ दौड़ना है मुझे
अपनी मर्ज़ी ही करोगे तुम भी
अब तो यूँ लब पे मिरे हर्फ़-ए-सदाक़त आए
आब-ए-रवाँ हूँ रास्ता क्यूँ न ढूँढ लूँ