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जब कि सारी काएनात उस की निगहबानी में है - रोहित सोनी ‘ताबिश’ कविता - Darsaal

जब कि सारी काएनात उस की निगहबानी में है

जब कि सारी काएनात उस की निगहबानी में है

दिल अज़ल ही से न जाने कैसी हैरानी में है

मेरी फ़ितरत भी तो शामिल मेरी नादानी में है

लग़्ज़िश-ए-आदम जो पिन्हाँ ख़ून-ए-इंसानी में है

जाने किस हंगाम में डाली गई बुनियाद-ए-दिल

दिल जो अब तक मुब्तला रंज-ओ-परेशानी में है

दूर कर देता है बस इक पल में सब शिकवे-गिले

ये करिश्मा भी किसी की आँख के पानी में है

क्या समझ पाएँगे ये अहल-ए-ख़िरद इस राज़ को

लुत्फ़ दानाई में कब वो है जो नादानी में है

दिल में आता है हिसार-ए-हर-तलब को तोड़ दूँ

ऐसी ख़्वाहिश भी तमन्नाओं की तुग़्यानी में है

हो गई आदम से ये कैसी ख़ता जिस के एवज़

नस्ल-ए-आदम आज तक ऐसी पशेमानी में है

कोई सूरत जब न बन पाई तो रोना आ गया

कुछ तो तस्कीन-ए-ग़म-ए-दिल अश्क-अफ़्शानी में है

गर मिले ख़ुद में समो लें सारे इंसानों का दर्द

इस क़दर वुसअत हमारी तंग-दामानी में है

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In Hindi By Famous Poet Rohit Soni 'Tabish'. is written by Rohit Soni 'Tabish'. Complete Poem in Hindi by Rohit Soni 'Tabish'. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.