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अज़ीज़ इतना तिरा रंग-ओ-बू लगे है मुझे - रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान कविता - Darsaal

अज़ीज़ इतना तिरा रंग-ओ-बू लगे है मुझे

अज़ीज़ इतना तिरा रंग-ओ-बू लगे है मुझे

कोई क़रीब से गुज़रे तो तू लगे है मुझे

सफ़र ख़याल का मैं किस तरह तमाम करूँ

तिरी हर एक अदा चार-सू लगे है मुझे

ज़रूर कोई अजब शय है तुझ में पोशीदा

कि तेरा ज़िक्र भी अब कू-ब-कू लगे है मुझे

मैं आसमान की जानिब भी देखता हूँ मगर

जो मेरा चाँद है वो ख़ूब-रू लगे है मुझे

मैं अपनी ज़ात में तुझ को तलाश करता हूँ

बहुत ही सहल तिरी जुस्तुजू लगे है मुझे

है ये भी एक फ़ुसून-ए-निगाह ऐ 'रिज़वान'

नहीं वो पास मगर रू-ब-रू लगे है मुझे

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In Hindi By Famous Poet Rizwanurraza Rizwan. is written by Rizwanurraza Rizwan. Complete Poem in Hindi by Rizwanurraza Rizwan. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.