चहार सम्त से कल तक जो घर दमकता था

चहार सम्त से कल तक जो घर दमकता था

हम आज सैर को निकले तो बस ख़राबा था

न जाने किस लिए आँखें दिखाईं सूरज ने

हमारी आँखों ने बस ख़्वाब ही तो माँगा था

दरख़्त गहरे तनफ़्फ़ुस में हैं लरज़ते हैं

सवार अब्र लिए बिजलियों का कोड़ा था

हमारे हाथ में टूटा हुआ है आईना

सरापा था तो भला कैसा वो सरापा था

उठाए फिरते थे शानों पे आप अपनी लाश

वो लोग कौन थे क्या जुर्म उन का ठहरा था

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In Hindi By Famous Poet Rizwanullah. is written by Rizwanullah. Complete Poem in Hindi by Rizwanullah. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.